कम्प्यूटर का इतिहास – मानव में गिनने एवं गणना (Calculation) की योग्यता आने के उपरांत उसने सर्वप्रथम हाथों की उंगलियों का उपयोग गिनने के लिए किया । परन्तु जैसे-जैसे संख्याएँ बड़ी होने लगीं मानव को इन्हें गिनने के लिए अलग व्यवस्था की आवश्यकता प्रतीत होने लगी । इसके लिए अनेक गणना करने में सक्षम यंत्रों का निर्माण हुआ, जिसमें सर्वप्रथम यंत्र अबेकस (Abacus) था । जिसका उपयोग लगभग 5000 ईसा पूर्व गिनने और गणना करने के लिए किया जाता था । अबेकस वास्तव में कम्प्यूटर नहीं था परन्तु गणना करने का इतिहास इसी यंत्र से प्रारंभ होता है । अबेकस का उपयोग चीन एवं जापान में सर्वप्रथम किया गया है इस बात के प्रमाण प्राप्त होते हैं । अबेकस में एक फ्रेम होता है । जिसमें निश्चित दूरी पर कुछ छड़ें लगी होती हैं प्रत्येक छड़ में कुछ मोती लगे होते हैं जिन्हें छड़ में ऊपर और नीचे किया जा सकता है । इसके बाद का समय अंधकारमय प्रतीत होता है ।
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17वीं शताब्दी में स्काटलैंड के गणितज्ञ जान नेपियर ने एक यंत्र ‘नेपियर बोस’ का निर्माण किया जो उनकी खगोल विज्ञान की जटिल गणनाओं को करने में सहायता प्रदान करता था । इसके पश्चात जान नेपियर ने 1614 में लघुगुणक (Logarithms) की विधि विकसित की । लघुगुणक विधि से संख्याओं का जोड़, गुणा, भाग एवं घटाना आदि क्रियाएं कर सकते थे । इसके पश्चात 1615 में हेनरी ब्रिग्स ने बेस 10 (आधार 10) पर लघु-गुणांक विधि का विकास किया । सन् 1620 में एडमन्ड गन्टर (Edmund Gunter) ने स्लाइड रूल का निर्माण किया जो लघु गुणांक सिद्धांत पर ही कार्य करता था । इस स्लाइड रूल का आधुनिकीकरण विलियम ओस्टेड (William Oughtred) ने 1632 में कर इसे नया रूप दिया जिसकी सहायता से भी इंजीनियरिंग गणनाएँ की जा सकती थी | सन् 1642 में फ्रेंच गणितज्ञ और फिलासफर व्लेस पास्कल (Blaise Pascal) ने एक गणना करने की मशीन का निर्माण सफलतापूर्वक कर लिया । इस मशीन में गियर, पहिए और डायल होते थे । इसके प्रत्येक पहिए में 10 भाग होते थे । जब पहला पहिया दस भाग पूर्ण घूमता था तब दूसरा पहिया 1 भाग घूमता था इसी प्रकार जब दूसरा पहिया 10 भाग घूमता था तब तीसरा पहिया एक भाग घूमता था । इसी प्रकार आगे के पहिए घूमते थे । इस यंत्र को पास्कल का यांत्रिक केलकुलेटर कहा गया । इस यंत्र का उपयोग अंकों को जोड़ने एवं घटाने में किया जाता था । चूँकि पास्कल की मशीन केवल जोड़-घटाना करने में ही सक्षम थी, अतः कई वैज्ञानिकों एवं गणितज्ञों ने इसे गुणा करने योग्य बनाने में अपना योगदान दिया ।
जर्मन गणितज्ञ बेरन वान लिबनिज (Baron Von Leibniz) ने 1671 में पास्कल मशीन को गुणा योग्य बनाने हेतु सिद्धांत एवं कार्यप्रणाली घोषित की, परन्तु वे अपना यंत्र 1694 में ही बनाकर तैयार कर सके । परन्तु कई यांत्रिक त्रुटियों के कारण यह मशीन अधिक प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सकी ।
सन् 1820 में थामस डी. कोलमर (Thomas De Calmar) ने पास्कल के केलकुलेटर का आधुनिकरण कर इसे गुणा करने योग्य बनाया जो कि अत्यधिक प्रचलित हुआ ।
क्रेम्बिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बेबेज (Charles Babbage) ने जो कम्प्यूटर क्षेत्र के न्यूटन और आधुनिक कम्प्यूटर के पिता कहलाते हैं, सन् 1812 में एक मशीन बनाने की रूपरेखा तैयार की जिसका नाम उन्होंने ‘डिफरेन्सियल एन्जिन’ रखा । यह मशीन अन्य गणितीय क्रियाओं के साथ ही साथ अवकलन समीकरण को हल करने में भी सक्षम थी । इसके साथ ही साथ ये उत्तरों को प्रिन्ट करने का कार्य भी कर सकती थी । ब्रिटिश सरकार की आर्थिक सहायता से प्रोफेसर ने लगभग 20 वर्षों तक अपनी मशीन को बनाने का कार्य जारी रखा परन्तु इतने लम्बे समय तक कार्य करने के उपरांत भी मशीन बनकर तैयार होने की स्थिति में नहीं थी । इस कारण ब्रिटिश सरकार ने आर्थिक सहायता देना बंद कर दिया जिस कारण यह प्रोजेक्ट अधूरा ही रह गया और ‘डिफरेन्सियल एन्जिन’ मशीन पूर्ण रूपेण बनकर तैयार न हो सकी ।
सन् 1833 में बेबेज ने पुनः एक ‘एनालिटिकल मशीन’ को विकसित करने का विचार किया जो कि एक आटोमेटिक कम्प्यूटिंग मशीन थी जो लगभग 60 जोड़ प्रति मिनिट करने में सक्षम थी । इसमें मेमोरी या स्टोरेज का प्रयोग प्रथम बार किया गया । इस मशीन की यह विशेषता थी कि इसमें डाटा की री-एन्टरिंग (re-entering) नहीं होती थी, क्योंकि इसमें स्टोरेज की क्षमता थी । परन्तु बेबेज अपनी इस मशीन को बनाने के विचार को कार्यान्वित नहीं कर सके क्योंकि उस समय प्रचलित तकनीक उनकी आवश्यकताओं एवं जरूरतों को पूर्ण नहीं कर सकी । परन्तु उनके विचार वर्तमान समय में प्रचलित कम्प्यूटरों के मूल अवयवों से मिलते-जुलते हैं, यही कारण है कि उन्हें आधुनिक कम्प्यूटर का जनक कहा जाता है ।
डा. हर्मन हालरिथ (Dr. Herman Hollerith) ने एक मशीन का आविष्कार किया जिसमें डाटा को पंचकार्ड की सहायता से एन्टर कर सकते थे । यह मशीन कार्ड में हुए छिद्रों को पहचानकर डाटा को पढ़ सकती थी और तदुपरांत डाटा की गणना करती थी । वर्तमान समय में प्रचलित युक्तियों की तुलना में इस यंत्र की गति काफी धीमी थी । इस पंच कार्ड मशीन की अपार सफलता के बाद सन् 1896 में टेबुलेटिंग मशीन कंपनी बनाई गई । इसी दौरान अन्य कई कम्पनियाँ भी इस दौड़ में शामिल हुईं परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिल पाई सन् 1911 में ये सभी कम्पनियाँ आपस में मिल गई और कम्प्यूटिंग टेब्यूलेटिंग रिकार्ड कम्पनी का गठन हुआ । परन्तु कुछ ही वर्षों के बाद सन् 1924 में इस कम्पनी का नाम बदलकर आईबीएम (IBM- International Business Machine) कर दिया गया ।
सन् 1937 में हावर्ड विश्वविद्यालय के हावर्ड ए. एैकेन (Howard A. Aiken) ने बेबेज एवं पंचकार्ड की अवधारणा को मिलाकर IBM के साथ मिलकर पूर्णतः आटोमेटिक केलकुलेटिंग मशीन बनाने की योजना बनाई । लगभग सात वर्षों के उपरांत इस कार्य योजना ने मूर्तरूप लिया और जनवरी 1944 में यह मशीन बनकर तैयार हुई । इसे ‘MARK-I’ नाम दिया गया ।
यह प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर माना गया इस मशीन की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-
1. डाटा पंचकार्ड की सहायता से प्राप्त करती थी ।
2. प्राप्त डाटा को मेमोरी में स्टोर रखने में सक्षम थी ।
3. आटोमेटिक नियंत्रित इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रिलेज एवं अर्थमेटिक काउंटर जो कि यांत्रिक थे की सहायता से गणना करती थी ।
4. यह प्रोग्राम की जा सकती थी अर्थात् किसी विशेष गणना को करने के लिए निर्देशों के समूह को ग्रहण करने में सक्षम थी ।
5. इसकी सहायता से बीजगणितीय (Arithmetic) एवं तार्किक (Logical) गणनाएँ की जा सकती थी ।
6. वैज्ञानिक उदाहरणों को हल करने के योग्य थी ।
निर्वात नली (Vacuum Tube) के आविष्कार के उपरांत सन् 1947 में पहला इलेक्ट्रानिक कम्प्यूटर ENIAC (Electronic Numerical Integrator and Calculator) बनाया गया । ENIAC की गति MARK-I से काफी तीव्र थी । इसमें निर्वात नलियों, संधारित्रों (Capacitors) एवं स्विचों को प्रयुक्त किया गया । इसका निर्माण पेनसिलवैनिया विश्वविद्यालय के जान डब्ल्यू. माऊचले (John W. Mauchly) एवं जे. प्रेसपर एर्कट (J. Presper Eckert) के निर्देशन में हुआ । इस प्रोजेक्ट के सलाहकार जान वान न्यूमेन (John Von Neumann) थे । यह बहुत बड़े आकार की मशीन थी जिसमें लगभग 2000 निर्वात नलियाँ प्रयुक्त की गई थी और इसका वजन लगभग 30 टन था ।
सन् 1949 में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड में पहला प्रोग्राम को स्टोर करने में सक्षम कम्प्यूटर EDSAC (Electronic Delayed Storage Automatic Computers) बनाया गया । इसके पूर्व में बनाये गए सभी कम्प्यूटरों को प्रोग्राम तो किया जा सकता था परन्तु निर्देशों को कम्प्यूटर की मेमोरी में स्टोर कर नहीं रखा जा सकता था । EDSAC में निर्देशों को कंप्यूटर की मेमोरी में स्टोर कर रखा जा सकता था | यह अवधारणा सर्वप्रथम जान वान न्यूमेन ने उसी दौरान स्थापित की । इसमें पेपर टेप के माध्यम से निर्देशों को स्टोरेज यूनिट में व्यवस्थित कर रख सकते थे । इस कम्प्यूटर में भी निर्वात नलियाँ प्रयुक्त की गई लेकिन यह ENIAC से थोड़ी अधिक तीव्र गति से गणना करता था ।
1945 में जान वान न्यूमेन की अभिधारणा पर EDVAC (Electronic Discrete Variable Automatic Computer) के निर्माण की योजना बनाई गई । यह मशीन 1951 में बनकर तैयार हुई । इसमें डेसिमल नम्बरों के स्थान पर बायनरी नम्बरों का उपयोग किया गया । इसकी उच्च तीव्रता की मेमोरी, प्रोग्राम क्रियान्वयन के दौरान निर्देशों के साथ-साथ डाटा को भी स्टोर करने में सक्षम थी ।
UNIVAC-I (Universal Automatic Computer) व्यापारिक दृष्टिकोण से बनाया गया प्रथम कम्प्यूटर था, जिसमें डाटा के इनपुट एवं आउटपुट हेतु मेग्नेटिक टेप प्रयुक्त किया गया । यह 1946 में बनाया गया एवं पहला कम्प्यूटर अमेरिका के जनगणना कार्यालय में 1951 में लगाया गया ।
कम्प्यूटर एक बहु उपयोगी इलेक्ट्रानिक मशीन है जो मानव के लगभग सभी कार्य में सहायता प्रदान करती है । कम्प्यूटर का अपना कोई दिमाग नहीं होता । वे स्वयं ही किसी कार्य को करने में सक्षम नहीं है जब तक कि उन्हें कार्य करने के निर्देश न प्राप्त हो जायें । कम्प्यूटर गणितीय क्रियाएँ डाटा एवं सूचना के संग्रहण के साथ ही साथ सूचनाओं एवं जानकारियों के आदान-प्रदान करने का कार्य बहुत अच्छी तरह से बिना त्रुटि के करने में सक्षम होता है । पहले कम्प्यूटर का उपयोग केवल डाटा ग्रहण कर उन्हें प्रोसेस करने के उपरांत परिणाम देने तक ही सीमित था परन्तु व्यावहारिक रूप से वर्तमान में अब ऐसा कोई क्षेत्र शेष नहीं रहा है जहाँ कम्प्यूटर का उपयोग नहीं हो रहा हो । आज के समय में कम्प्यूटर के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
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